दोस्तो कौरवों और पांडवों के बीच हुए युद्ध के लिए अक्सर लोग दुर्योधन, और कौरवों के मामा शकुनि को जिम्मेदार मानते है, लेकिन ऐसा नहीं है। अगर आप महाभारत की कथा पर गौर करेंगे तो आप पाएंगे की, इस युद्ध का बीज बहुत पहले ही बो दिया गया था। महाभारत काल में कई ऐसी अनोखी घटनाएं हुईं जिससे पूरा इतिहास बदल गया। महाभारत की कई कहानियां हम बचपन से सुनते आ रहे हैं। आज आपको एक ऋषि और नाव चलाने वाली एक लड़की की प्रेम कहानी के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें यमुना के बीच में प्रेम हुआ। फिर दोनों ने एक ऐसे महान व्यक्ति को जन्म दिया, जो आगे जाकर महाभारत के रचयिता बने। अगर सत्यवती और ऋषि पराशर के बीच प्रेम न हुआ होता, तो शायद ही महाभारत होता। दोस्तो आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि, क्या यह वही सत्यवती थी, जो राजा शांतनु की पत्नी और हस्तिनापुर की महारानी बनी? जी हाँ दोस्तों हम उसी सत्यवती की बात कर रहे हैं. दोस्तो सत्यवती और ऋषि पराशर की प्रेम कहानी, और वेदव्यास के जनम की कथा, बड़ी ही रोचक और रहस्यपूर्ण है, इसलिए आर्टिकल को अंत तक पूरा पढ़ें.
कौन थे ऋषि पराशर:-
दोस्तो, ऋषि पराशर महान ऋषि वशिष्ठ के पौत्र और शक्तिमुनि एवं अद्यश्यंती के पुत्र थे। ऋषि पारशर के पास दिव्य और अलौकिक शक्ति थी। उन्होंने वैदिक ज्योतिष की रचना की। उन्होंने कई खूंखार राक्षसों को मार गिराया। वहीं सत्यवती को एक अप्सरा ने जन्म दिया था। उस अप्सरा को मछली बने रहने का श्राप मिला था। इसलिए सत्यवती के शरीर से मछली की गंध आती थी। उसे मत्स्यगंधा भी कहा जाता था । सत्यवती का पालन पोषण एक केवट ने किया था। और वह नाव खेने का कार्य करती थी.
सत्यवती और ऋषि पराशर की प्रेम कहानी:-
कहा जाता है की ऋषि पराशर एक दिन यमुना पार करने के लिए नाव पर सवार हुए। भाग्यवश उस दिन वह नाव मछुआरे धीवर की जगह उसकी पुत्री सत्यवती चला रही थी। निषाद पुत्री सत्यवती देखने में बहुत ही सुंदर थी। ऋषि पराशर उसके रूप और यौवन को देखकर उसपर मोहित हो गए। उन्होंने निषाद कन्या सत्यवती से सहवास करने की इच्छा जताई। लेकिन सत्यवती ने मना कर दिया और कहा कि यह तो धर्म के विरुद्ध है। विवाह से पहले में ऐसा अनैतिक काम नहीं करुँगी। पराशर ऋषि नहीं माने और उससे बार बार प्यार करने का निवेदन करने लगे। अंत में सत्यवती ऋषि पराशर से सबंध बनाने को तैयार हुई। लेकिन सत्यवती ने ऋषि के सामने 3 शर्तें रखीं।
पहली यह कि उन्हें ऐसा करते हुए कोई नहीं देखे। ऐसे में तुरंत ही ऋषि पाराशर ने एक कृत्रिम द्वीप बना दिया, जहाँ उन दोनों के सिवा तीसरा कोई नहीं था। दूसरी शर्त यह कि उनकी कौमार्यता किसी भी हालत में भंग नहीं होनी चाहिए। ऐसे में ऋषि ने आश्वासन दिया कि संतान के जन्म के बाद, उसकी कौमार्यता पहले जैसी ही हो जाएगी। तीसरी शर्त यह कि वह चाहती है कि, उसकी मछली जैसी दुर्गंध मनमोहक सुगंध में बदल जाए। तब पराशर ऋषि ने उसके चारों ओर एक सुगंध का वातावरण निर्मित कर दिया। जिसे कि कई मील दूर से भी महसूस किया जा सकता था। सभी शर्तों को पूरा करने के बाद सत्यवती और ऋषि पराशर ने नाव में ही सम्बन्ध बनाये।
वेदव्यास का जन्म कैसे हुआ?
आगे चलकर इसी नदी के द्वीप पर ही सत्यवती को पुत्र की प्राप्ति होती है। यही पुत्र आगे चलकर वेदव्यास कहलाते हैं। व्यासजी सांवले रंग के थे जिस कारण इन्हें ‘कृष्ण’ कहा गया, तथा यमुना के बीच स्थित एक द्वीप पर उनका जन्म हुआ था इसीलिए उन्हें ‘द्वैपायन’ भी कहा गया। कालांतर में वेदों का भाष्य करने के कारण वे वेदव्यास के नाम से विख्यात हुए। वेदव्यास ही महाभारत के रचयिता हैं। यही निषाद पुत्री सत्यवती आगे चलकर हस्तिनापुर नरेश शांतनु की रानी बनी। सत्यवती के कारण ही गंगा पुत्र देवव्रत को आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा लेनी पड़ी। और देवव्रत का नाम भीष्म हो गया।
धृतराष्ट्र और पांडु का जन्म कैसे हुआ?
बाद में सत्यवती के राजा शांतनु से चित्रांगद और विचित्रवीर्य नामक दो पुत्र हुये। चित्रांगद के बड़े होने पर उन्हें हस्तिनापुर का राजा बनाया गया। कुछ ही समय बाद गन्धर्वों से युद्ध करते हुये चित्रांगद मारे गए। इस पर भीष्म ने उनके अनुज विचित्रवीर्य को राज्य सौंप दिया। विचित्रवीर्य अपनी दोनों रानियों के साथ भोग विलास में रत हो गये। किन्तु दोनों ही रानियों से उनकी कोई सन्तान नहीं हुई। और वे पीलिया रोग से पीड़ित होने के कारण मृत्यु को प्राप्त हो गये। तब माता सत्यवती ने अपने पहले पुत्र वेदव्यास को बुलाया, जिससे धृतराष्ट्र,पांडु और विदुर का जन्म हुआ।
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