नवरात्रि के तीसरे दिन (मां चंद्रघंटा) की व्रत कथा

दोस्तो हिन्दू धर्म पुराणों मैं नवरात्रि का बहुत महत्व है। हिन्दू कलेण्डर की शुरुआत चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि से होती है। हिन्दू नववर्ष का प्रारम्भ नवरात्रि या शक्ति आराधना के साथ किया जाता है। शक्ति ही जीवन और जगत का आधार है। शक्ति के बिना जीवन अधूरा और निष्प्राण माना जाता है। जीवन दायिनी शक्ति की पूजा, आराधना का पर्व ही नवरात्रि कहलाता है। हिन्दू धर्म मैं शक्ति को ही सर्वोपरि और समृद्धि का सूचक माना जाता है। इसलिए सनातन धर्म मैं सुख संमृद्धि के लिए नौ दिनों तक माता के अलग – अलग नौ स्वरूपों की आराधना की जाती है। नवरात्रि का तीसरा दिन माता के चंद्रघंटा स्वरुप को समर्पित होता है। पूरे विधि-विधान से माता चंद्रघंटा की उपासना करने से जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

Maa Chandraghanta Mantra & Puja Vidhi

मां चन्द्रघण्टा का स्वरुप और सवारी:-

मां चन्द्रघण्टा के शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला हैं। इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचंद्र विराजमान हैं, इसलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। इनके गले में सफ़ेद फूलों की माला सुशोभित रहती हैं। मां चंद्रघंटा सिंह की सवारी करती हैं। मां चंद्रघंटा स्वरूप में देवी की दस भुजाएं हैं जिनमे एक तरफ कमल और कमंडल तो दूसरी ओर शत्रुओं के नाश के लिए त्रिशूल, गदा और खड्ग जैसे अस्त्र भी धारण करती हैं।

मां चन्द्रघण्टा की कथा:-

हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार देवताओं को दैत्यों के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए माता ने चंद्रघंटा स्वरुप धारण किया था। दैत्यराज महिषासुर ने जब देवताओं पर आक्रमण करके उन्हें स्वर्ग से निकाल दिया था और देवताओं को तरह – तरह से प्रताड़ित होना पड़ रहा था। तब देवताओं ने माता की स्तुति की और उनसे दैत्यराज महिषासुर से मुक्ति दिलाने की प्राथना की। देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर माता ने चंद्रघंटा का रूप धारण किया। माता चंद्रघंटा सिंह पर सवार थीं और इनके तीन नेत्र और दस भुजाएं थीं। माता को भगवान शिव ने त्रिशूल, भगवान विष्णु ने सुदर्शन और ब्रह्मा जी ने कमंडल देकर शस्त्रों से विभूषित किया। माता ने भगवान शिव के द्वारा दिए गए त्रिशूल से दैत्यराज महिषासुर का वध करके देवताओं को अभय प्रदान किया था।

नवरात्रि के तीसरे दिन की पूजा विधि:-

नवरात्रि के तीसरे दिन माता के चंद्रघंटा स्वरुप की पूजा – आराधना का विधान है। देवी का यह स्वरुप परम शांति दायक और कल्याणकारी है। शेर पर सवार माता चंद्रघंटा की मुद्रा युद्ध के लिए उद्धत रहने की है। मां के इस स्वरूप की पूजा के लिए नवरात्रि के तीसरे दिन सुबह जल्दी स्नान कर मां का ध्यान करना चाहिए। देवी की पूजा के लिए सफेद कमल या पीले गुलाब के फूल या माला अर्पित करें। इसके बाद माता का ध्यान करते हुए पांच घी के दीपक जलाएं। माना जाता है कि मंत्रों का जप, घी के दीपक जलाने, आरती, शंख और घंटी बजाने से माता प्रसन्न होती हैं। नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघण्‍टा की पूजा में केसर की बनी खीर का भोग लगाना सबसे अच्‍छा माना जाता है। मां के भोग में दूध से बनी मिठाइयों का भोग लगाने की परंपरा है।

नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा को प्रसन्न करने के लिए उनके बीज मंत्र ‘ऊँ देवी चंद्रघण्टायै नमः’ का 108 बार जाप कर सकते हैं। इसके अलावा

“या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।”
इस मंत्र का भी जप कर सकते हैं।

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Updated: April 10, 2024 — 8:57 am

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