मेघनाथ को केवल लक्ष्मण ही क्यों मार सकते थे?

दोस्तो रामायण काल के ऐसे कई रहस्य हैं, जिन्हें बहुत ही कम लोग जानते हैं, भारतीय संस्कृति के मार्गदर्शक स्वरूप महाग्रंथों में वाल्मीकि द्वारा रचित, रामायण एक अनुपम महाकाव्य व स्मृति का अंग है। शास्त्रों के अनुसार यह अधर्म पर धर्म की विजय व धर्म के पुनर्स्थापना की गाथा के रूप में वर्णित की गई है। रामायण में वर्णित राम का वनवास, सीता हरण और सीता की वापसी हेतु राम व रावण का धर्म युद्ध क्रमशः मेघनाथ वध भी स्वर्ण रूप से सुशोभित है। कहते हैं कि मेघनाथ और लक्ष्मण का युद्ध अत्यंत दर्शनीय था क्योंकि मेघनाथ बहुत ही प्रबल योद्धा था। एक बार ऋषि अगस्‍त्‍य ने भगवान राम के दरवार मैं कहा कि रावण के पुत्र इंद्रजीत को स्‍वयं राम भी नहीं मार सकते थे, उन्‍हें तो केवल लक्ष्‍मण ही मार सकते थे। आइए जानते हैं कि ऋषि अगस्‍त्‍य ने ऐसा क्‍यों कहा? मेघनाथ को केवल लक्ष्मण ही क्यों मार सकते थे?

Meghnath and Lakshman
दोस्तो, मेघनाथ बहुत ही प्रबल योद्धा था। उसके जन्मोपरांत ही सृष्टि के संपूर्ण मेघों ने रोते हुए एक समान नाद किया था, तत्पश्चात उसका नामकरण मेघनाथ हुआ। उसके पास नागपाश रूपी ऐसा शस्त्र था जिससे वह अदृश्य होकर राम-लखन सहित पूर्ण सेना पर बादलों के पीछे छुप कर वार कर सकता था। वह भली भांति जानता था कि संसार में किसी भी साधारण मनुष्य के हाथों उसका वध संभव नहीं है।
दोस्तो, धर्म और अधर्म के बीच युद्ध की समाप्ति के उपरांत, भगवान श्री राम के राज्याभिषेक में सम्मिलित अनेक तपस्वी, ऋषि-मुनि आदि भगवान राम से मिलने व आशीर्वाद देने वहां पर उपस्थित हुए। उस समय मुनि अगस्त्य ने प्रभु श्रीराम से कहा – राम आपने रावण व कुंभकरण को मारा जो अति दुर्लभ था, लेकिन अधिक विषाद संग्राम लक्ष्मण ने मेघनाद से किया था। उसका वध सबसे ज्यादा विषम था। गुरु के वचनों को सुन प्रभु श्री राम अचंभित हो गए क्योंकि वे मेघनाथ की प्रबलता व उनके वरदान से अनभिज्ञ थे।

तभी अगस्त्य मुनि उन्हें पूरी बात विस्तार से बताते हुए कहते हैं कि मेघनाद विश्व का एकमात्र ऐसा योद्धा था, जिसके पास समस्त दिव्यास्त्र थे। तीनों महास्त्र- ब्रह्मा, नारायणास्त्र व महादेव का पाशुपतास्त्र भी था। उसे वरदान था कि उसके रथ पर रहते हुए कोई उसे परास्त नहीं कर सकता। इसी कारण उस समय केवल संसार में वही एक योद्धा था, जिसने अतिमहारथी होने का स्तर प्राप्त किया था। उसने स्वयं भगवान रूद्र से युद्ध की शिक्षा प्राप्त की और समस्त शस्त्र प्राप्त किए। उसकी शिक्षा प्राप्त होते ही, रुद्र ने स्वयं ही कहा कि उसे इस संसार में कोई पराजित नहीं कर सकता, किंतु उनका वध केवल लक्ष्मण के ही हाथों संभव था। महर्षि के मुख वाणी से मेघनाथ का ऐसा वर्णन सुन भगवान राम विस्मयित रह गए और बोले लक्ष्मण निसंदेह महा प्रचंड योद्धा है और उनके पास भी विश्व के सारे दिव्यास्त्र थे, किंतु उसे पशुपतास्त्र का ज्ञान नहीं था जिसका ज्ञान मेघनाथ को था। फिर भी लक्ष्मण किस प्रकार मेघनाथ का वध करने में सफल रहे, आप ऐसा क्यों कह रहे हैं, कि केवल लक्ष्मण ही उसका वध कर सकते थे।

इस पर अगस्त्य मुनि ने कहा – आपका कथन सत्य है। जितने दिव्यास्त्र मेघनाथ के पास थे, उतने ही लक्ष्मण के पास थे, किंतु मेघनाथ को एक वरदान प्राप्त था, एक बार देवासुर संग्राम में रावण को इंद्र द्वारा बंदी बना लिया गया, तब मेघनाथ ने अपने पिता की रक्षा हेतु इंद्र को ही बंदी बना लिया और उन्हें लंका ले आया। जब इंद्र को मुक्त कराने ब्रह्मा जी उसके द्वार पर पधारे, तो ब्रह्मा से उसने एक वरदान रूपी अपेक्षा पूर्ण करने को कहा, अपने प्राणों की रक्षा व अमर रहने हेतु उसने यह वरदान मांगा कि मुझे वही मार सकेगा जिसने 14 वर्षों तक ना तो भोजन ग्रहण किया हो, ना ही किसी स्त्री का मुख देखा हो, और ना ही निद्रा का आहार ग्रहण किया हो। उसके वरदान की मांग को पूर्ण कर ब्रह्मा जी ने इंद्र देव को मेघनाथ की गिरफ्त से मुक्ति प्रदान की।

श्रीराम बोले मैं बनवास काल में चौदह वर्षों तक नियमित रूप से लक्ष्मण के हिस्से का फल-फूल देता रहा। उन्‍होंने कहा कि मैं सीता के साथ एक कुटी में रहता था, बगल की कुटी में लक्ष्मण थे, फिर सीता का मुख भी न देखा हो और चौदह वर्षों तक सोए न हों, ऐसा कैसे संभव है? अगस्त्य मुनि सारी बात समझकर मुस्कुराए। प्रभु से कुछ छिपा है भला। दरअसल, सभी लोग सिर्फ श्रीराम का गुणगान करते थे, लेकिन भगवान चाहते थे कि लक्ष्मण के तप और वीरता की चर्चा भी अयोध्या के घर-घर में हो। अगस्त्य मुनि ने श्रीराम से कहा कि क्यों न लक्ष्मणजी से यह पूछ लिया जाए। लक्ष्मणजी आए तो रामजी ने कहा कि आपसे जो पूछा जाए उसे सच-सच कहिएगा। प्रभु ने पूछा- हम तीनों चौदह वर्षों तक साथ रहे फिर तुमने सीता का मुख कैसे नहीं देखा? फल दिए गए फिर भी अनाहारी कैसे रहे? और 14 साल तक सोए नहीं? यह कैसे हुआ? तब लक्ष्मणजी ने बताया- भैया जब हम भाभी को तलाशते ऋष्यमूक पर्वत पर गए तो सुग्रीव ने हमें उनके आभूषण दिखाकर पहचानने को कहा था। आपको स्मरण होगा मैं उनके पैरों के आभूषण के अलावा कोई अन्‍य आभूषण नहीं पहचान पाया था क्‍योंकि मैंने कभी भी उनके चरणों के ऊपर देखा ही नहीं।

चौदह वर्ष नहीं सोने के बारे में लक्ष्‍मण ने कहा कि आप और माता एक कुटिया में सोते थे। मैं रातभर बाहर धनुष पर बाण चढ़ाए पहरेदारी में खड़ा रहता था। निद्रा देवी ने मेरी आंखों पर पहरा करने की कोशिश की तो मैंने निद्रा को अपने बाणों से बेध दिया था। निद्रा ने हारकर स्वीकार किया कि वह चौदह साल तक मुझे स्पर्श नहीं करेगी लेकिन जब श्रीराम का अयोध्या में राज्याभिषेक होगा और मैं उनके पीछे सेवक की तरह छत्र लिए खड़ा रहूंगा तब वह मुझे घेरेंगी। आपको याद होगा राज्याभिषेक के समय मेरे हाथ से छत्र गिर गया था। लक्ष्‍मण जी ने आगे बताया कि जब मैं जो फल-फूल लाता था आप उसके तीन भाग करते थे। एक भाग देकर आप मुझसे कहते थे लक्ष्मण फल रख लो।आपने कभी फल खाने को नहीं कहा- फिर बिना आपकी आज्ञा के मैं उसे खाता कैसे? मैंने उन्हें संभाल कर रख दिया। लक्ष्‍मणजी भगवान राम से कहते हैं कि मैंने गुरु विश्वामित्र से एक अतिरिक्त विद्या का ज्ञान लिया था। इससे बिना अन्‍न ग्रहण किये भी व्‍यक्ति जीवित रह सकता है। उसी व‍िद्या से मैंने भी अपनी भूख न‍ियंत्रित की और इंद्रजीत मारा गया। यह सुनते ही प्रभु फिर से भाव-विभोर हो उठे और लक्ष्‍मणजी को गले से लगा लिया।

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Updated: January 26, 2024 — 5:19 pm

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