दोस्तो किसी ने भी भगवान को नहीं देखा है, लेकिन सूर्य और चंद्रमा को हर व्यक्ति ने देखा है। ज्योतिष शास्त्र में नवग्रहों में सूर्य को राजा और चंद्रमा को रानी व मन का कारक माना गया गया है। विज्ञान भी मानता है कि सूर्य के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। वेदों में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है। सूर्य से ही धरती पर जीवन संभव है और इसीलिए वैदिक काल से ही भारत में सूर्य की उपासना का चलन रहा है। वेदों की ऋचाओं में अनेक स्थानों पर सूर्य देव की स्तुति की गई है। हिन्दू धर्म ग्रंथों मैं सूर्य भगवान को नारायण कहा गया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सूर्य देव को सूर्य नारायण क्यों कहते हैं? अगर नहीं तो, इस आर्टिकल को अंत तक पूरा पढियेगा क्यों कि इस आर्टिकल के माध्यम से हम इस रहस्यमय सवाल का जबाब देने की कोशिस करेंगे।
सूर्य देव की उत्पत्ति कैसे हुई?
हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुशार सृष्टि के प्रारम्भ में ब्रह्मा जी के मुख से ऊँ प्रकट हुआ था, वही सूर्य का प्रारम्भिक सूक्ष्म स्वरूप था। इसके बाद भूः भुव तथा स्व शब्द उत्पन्न हुए। ये तीनों शब्द पिंड रूप में ऊँ में विलीन हए तो सूर्य को स्थूल रूप मिला। सृष्टि के प्रारम्भ में उत्पन्न होने से इसका नाम आदित्य पड़ा। इनसे अधिक निरंतर रहने वाला कोई देवता नहीं है। इन्हीं से यह जगत स्थित रहता है, अपने अर्थ में प्रवृत्त होता तथा चेष्टाशील होता हुआ दिखाई पड़ता है। इसके उदय होने पर सभी का उदय होता है और अस्त होने पर सभी अस्तगत हो जाते हैं अर्थात सब कुछ अंधकार हो जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि इनसे श्रेष्ठ देवता न हुए हैं, न भविष्य में होंगे।
सूर्य देव को सूर्य नारायण क्यों कहते हैं?
समस्त वेदों में वे परमात्मा के नाम से पुकारे जाते हैं। इतिहास और पुराणों में इन्हें ‘अंतरात्मा’ नाम से अभिहित किया गया है। सूर्य संपूर्ण संसार के प्रकाशक हैं। इनके बिना सब अंधकार है। सूर्य ही जीवन, तेज, ओज, बल, यश, चक्षु, आत्मा और मन हैं। आदित्य लोक में भगवान सूर्यनारायण का साकार विग्रह है। वे रक्तकमल पर विराजमान हैं, उनकी चार भुजाएं हैं। वे सदा दो भुजाओं में पद्म धारण किए रहते हैं और दो हाथ अभय तथा वरमुद्रा से सुशोभित हैं। वे सप्ताश्वयुक्त रथ में स्थित हैं। सूर्य देव को सूर्य नारायण इसलिए भी कहा जाता है क्यों कि पृथ्वी पर उपस्थित जीवों के लिए भगवान नारायण स्वरुप सूर्य देव पृथ्वी का पालन करते हैं।
सूर्य देव को आदित्य क्यों कहा जाता है?
सूर्य देव का आदित्य नाम पड़ने के पीछे सूर्य देव के जन्म की कथा आती है। भगवान सूर्य वैसे तो अजन्मे हैं फिर भी एक जिज्ञासा होती है कि इनका जन्म कैसे हुआ? कहां हुआ और किसके द्वारा हुआ? इस संबंध में पुराण में एक कथा प्राप्त होती है। सूर्य देव के जन्म की यह कथा भी काफी प्रचलित है। इसके अनुसार ब्रह्मा जी के पुत्र मरिचि हुए और मरिचि के पुत्र महर्षि कश्यप थे। महर्षि कश्यप का विवाह प्रजापति दक्ष की कन्या दीति और अदिति से हुआ। दीति से दैत्य पैदा हुए और अदिति ने देवताओं को जन्म दिया। अदिति के गर्भ से जन्म लेने के कारण इन्हें आदित्य कहा गया। वहीं कुछ कथाओं में यह भी आता है कि अदिति ने सूर्यदेव के वरदान से हिरण्यमय अंड को जन्म दिया, जो कि तेज के कारण मार्तंड कहलाया।
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