हनुमान पुत्र मकरध्वज का जन्म कैसे हुआ था?

दोस्तो भगवान श्री राम के परम भक्त हनुमान जी के बारे में हम सब ने कई कथाएं सुनी हैं। हनुमान जी अपने भक्तों के सभी कष्टों का नाश करते हैं, और साथ ही सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण करते हैं। भगवान श्रीराम के भक्तों में सबसे ऊपर जिसका नाम है, वह पवन पुत्र हनुमान है. महाबली हनुमान को बाल ब्रह्मचारी कहा जाता है। हालाँकि पुराणों में उनके विवाह का वर्णन है, जहाँ उन्हें भगवान सूर्यनारायण की पुत्री सुवर्चला से विवाह करना पड़ा था। किन्तु ये विवाह केवल उनकी शिक्षा पूर्ण करने के लिए था, और इसके अतिरिक्त उन दोनों में कोई और सम्बन्ध नहीं रहा। इसके अतिरिक्त हनुमान के एक पुत्र मकरध्वज का भी वर्णन रामायण में मिलता है। अब सवाल यह उठता है कि, बाल ब्रह्मचारी हनुमान पुत्र मकरध्वज का जन्म कैसे हुआ था?जिसका जबाब आप इस आर्टिकल के माध्यम से जान सकते हैं. यह कथा बड़ी ही रोचक और रहस्यपूर्ण है,इसलिए आर्टिकल को अंत तक पूरा पढ़ें .

Makardhwaj ki Kahani

हनुमान पुत्र मकरध्वज की कथा:-

दोस्तो, रामायण में हनुमान जी के एक पुत्र मकरध्वज का वर्णन मिलता है. कथा इस प्रकार है कि, रावण का भाई अहिरावण अपनी माया से श्रीराम और लक्ष्मण का अपहरण कर लेता है। जब सबको पता चलता है कि श्रीराम और लक्ष्मण शिविर में नहीं हैं, तो सभी चिंतित हो जाते हैं। विभीषण द्वारा ये पुष्टि करने पर कि दोनों भाइयों को अहिरावण ले गया है, हनुमान उन्हें मुक्त करवाने पाताल लोक पहुँचते हैं। तो उन्हें वहाँ एक वानर द्वार की रक्षा करते हुए दिखता है।

एक वानर को इस प्रकार अहिरावण के महल की रक्षा करता देख हनुमान आश्चर्यचकित रह जाते हैं। साथ ही उस युवा वानर को देख कर हनुमान के मन में अनायास उसके प्रति स्नेह की भावना जग जाती है। वे उसके पास जाते हैं और उसका परिचय पूछते हैं। एक अन्य वानर को पाताल में अपने समक्ष देख कर वो युवा वानर भी आश्चर्य से भर जाता है, किन्तु अथिति समझ कर वो हनुमान से कहता है – ‘हे कपिश्रेष्ठ! मेरा नाम मकरध्वज है, और मैं पवनपुत्र हनुमान का पुत्र हूँ।’ उसे इस प्रकार बोलते देख कर हनुमान कहते है – ‘हे युवक! तुम वेश भूषा से ज्ञानी लगते हो, किन्तु तुम्हे इस प्रकार असत्य वचन नहीं बोलना चाहिए। हनुमान तो बाल ब्रह्मचारी है। फिर तुम उनके पुत्र किस प्रकार हो सकते हो?’

इसपर मकरध्वर कहता है – ‘हे ज्येष्ठ! मैं असत्य वचन नहीं कहता। मेरे पिताश्री को जब महाराज रावण ने लंका में बंदी बनाया तो उनकी पूछ में आग लगा दी। उसी अग्नि से मेरे पिता हनुमान ने पूरी लंका को जला डाला। लंका नगरी के जलने के कारण उत्पन्न हुए ताप से हनुमान व्यथित हो गए, और शीतलता के लिए समुद्र के जल में उतर गए। इतने श्रम को करने के कारण उनके शरीर से स्वेद गिरने लगा, जिसे उसी समुद्र में रहने वाली एक मकर ने निगल लिया। महा पराक्रमी हनुमान के स्वेद को निगलने के कारण वो मकर गर्भवती हो गयी। कुछ समय के पश्चात मेरे स्वामी अहिरावण ने शिकार कर उस मकर को पकड़ा, और जब उसका उदर चीरा गया तो उसी से मेरी उत्पत्ति हुई। मकर के शरीर से उत्पन्न होने के कारण महाराज अहिरावण ने मेरा नाम मकरध्वज रखा।’

उसे इस प्रकार बोलते देख कर हनुमान ने कहा – ‘तुम्हे अपने जन्म का रहस्य कैसे पता चला? अगर ये रहस्य तुम्हे अहिरावण ने बताया है तो इसकी सत्यता पर मुझे संदेह है. क्यूंकि राक्षस इस प्रकार की कहानी बनाने में माहिर हैं।’ तब मकर ध्वज ने कहा – ‘कपिश्रेष्ठ! ये कथा मुझे अहिरावण ने नहीं अपितु स्वयं देवर्षि नारद ने सुनाई है।’ इसपर हनुमान ने कहा – ‘अगर ये कथन देवर्षि का है तब तो ये निश्चय ही सत्य होगा।’ इसपर मकरध्वज ने कहा – ‘किन्तु आप ये प्रश्न क्यों कर रहे हैं? क्या आप मेरे पिता हनुमान को जानते हैं?’

तब हनुमान ने प्रसन्नता पूर्वक उसे अपना परिचय दिया। अपने पिता को अपने सामने देख कर मकरध्वज उनके चरणों में गिर पड़ा. हनुमान ने उसे अपने ह्रदय से लगाया और कहा, कि अहिरावण उनके आराध्य श्रीराम और उनके भाई लक्ष्मण को पाताल लोक लेकर आया है। उन दोनों को छुड़ाने के लिए पाताल लोक में जाना होगा.  किन्तु मकरध्वज उन्हें रोकते हुए कहता है – ‘हे पिताश्री! मैं विवश हूँ, अगर आप अंदर जाना चाहते हैं तो आपको मुझसे युद्ध करना होगा।’ और तब हनुमान को अपने पुत्र से युद्ध करना पड़ा। मकरध्वज निश्चय ही पराक्रमी था, किन्तु हनुमान के बल का कौन पार पा सका है? हनुमान उसे परास्त कर के उसी की पूछ से बांध कर वही द्वार पर छोड़ देते हैं। फिर अहिरावण की यज्ञ शाला में जाकर हनुमान पंचमुखी रूप धारण करते हैं, और अहिरावण का अंत कर देते हैं. और श्रीराम और लक्ष्मण को अहिरावण की कैद से छुड़ा कर बाहर आते हैं। वहाँ द्वार पर एक वानर को उसी की पूँछ में जकड़ा देख कर, श्रीराम हनुमान से पूछते हैं कि ये कौन है? तब हनुमान उन्हें बताते हैं कि वो उनका पुत्र मकरध्वज है। ये जानने के बाद श्रीराम उसे कैद से मुक्त करते हैं, और वही उसका राज्याभिषेक कर मकरध्वज को पाताल लोक का राजा बना देते हैं।

देश में मकरध्वज के कई मंदिर हैं, जिसमे से प्रमुख मंदिरों में पहला गुजरात के पोरबंदर के ओड़ाडार गांव में है। मकरध्वज का एक मंदिर गुजरात के ही कच्छ जिले के शंकोधर में स्थिर है, जहाँ हनुमान और मकरध्वज की साथ में पूजा की जाती है। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र के बीड जिले के वाडवाणी नामक स्थान पर, ग्वालियर (मध्यप्रदेश) और राजस्थान के बीवर में स्थित मकरध्वज बालाजी मंदिर प्रमुख हैं।

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Updated: February 7, 2024 — 2:41 pm

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