दोस्तो ये तो सभी जानते हैं कि, हिंदू धर्म के अनुसार एक पत्नी का 1 से ज्यादा पति होना गलत है. लेकिन फिर भी ये प्राचीन काल में संभव हुआ। जो लोगों को हैरत में डालने के लिए काफी था। महाभारत की द्रौपदी किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। द्रौपदी भारत की वह महिला है जिसके पांच पति थे. या वह पांच पुरुषों के साथ रमण करती थी. द्रौपदी राजा द्रुपद के हवन कुंड से तब जन्मीं, जब वह अपने दुश्मन द्रोणाचार्य के वध के लिए पुत्र प्राप्ति का यज्ञ कर रहे थे। उस यज्ञ के हवन कुंड की अग्नि से एक पुत्र तो जन्मा ही, साथ ही द्रौपदी का भी जन्म हुआ। द्रौपदी के स्वयंवर के बारे में तो हर कोई जानता होगा। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह कि, क्या द्रोपदी एक पतिब्रता स्त्री थी? अथवा नहीं? आज के आर्टिकल में हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे.
दोस्तो, द्रोपदी के पतिव्रता होने पर लोग सवाल इसलिए खड़े करते हैं, क्योंकि एक स्त्री के केवल एक पति होने को ही धर्म माना जाता हैं. यह बात सही भी है, लेकिन हमारे शास्त्रों का यह भी कहना है कि धर्म की गति बहुत ही सूक्ष्म होती है, जिसे हम या आप लोग नहीं समझ सकते. कभी किसी परिस्थिति में एक बात धर्म हो जाती है, तो दूसरी परिस्थिति में वह बात अधर्म भी हो सकती है. खुद कानून में भी कई नियमों पर अपवाद मिलते हैं, जहां किसी को मारना एक अपराध की श्रेणी में रखा जाता हैं. वहीं दूसरी ही ओर, यदि कोई व्यक्ति कुछ आपराधिक तत्वों को अपने आप को बचाने के क्रम में मार देता है, तो वह अपराध की श्रेणी में नहीं आता है. ऐसे भी कई केस होते हैं जहां न्यायालय परिस्थिति के अनुसार अलग अलग फैसले करती हैं. उसी प्रकार जो यह एक सामान्य दृष्टिकोण है कि, एक स्त्री का केवल एक ही पति हो सकता हैं, वह परिस्थिति के अनुसार बदल भी सकता है ।
द्रोपदी और पांडवों के विवाह से पूर्व भी ऐसे कुछ विवाह हुए थे, जिनमें एक स्त्री के कई पति थे. जटिला नाम की गौतम गोत्र की कन्या ने सात ऋषियों से विवाह किया था. इसके अलावा कुंडू ऋषि की कन्या वाक्षी ने दस प्रचेताओ से विवाह किया था, जो कि आपस में भाई थे.
द्रोपदी स्वयं देवी सची का अवतार है, और अर्जुन इन्द्र के अंश से उत्पन्न हुए हैं. वहीं अन्य चार पांडव भी पूर्ववर्ती इन्द्र ही है. खुद भगवान शिव ने ही द्रोपदी को इन पांचों की पत्नी नियुक्त किया था. इसके अलावा द्रोपदी के पूर्ववर्ती जन्म में शिवजी ने पांच पतियों की पत्नी बनने का वरदान भी दिया था, जिसकी वजह से आध्यात्मिक तौर पर भी यह विवाह पूरी तरह से सही था।
द्रोपदी का विवाह जो पांडवों के साथ हुआ था, वह भी कोई ऐसे ही नहीं हुआ था, बल्कि पूरे सोच विचार कर और सभी की रजामंदी से हुआ था. तथा इनका पाणिग्रहण भी पूरी वैदिक रीति से हुआ था, जिसकी वजह से सामाजिक दृष्टिकोण से भी यह विवाह एकदम सही था, क्योंकि इस विवाह में समाज का साथ था।
अगर किसी ने इस विवाह पर कोई सवाल उठाया था, तो वो तब ही उठाया था, जब उनके पास कुछ बोलने के लिए नहीं रहा था, यानी कि द्यूत सभा में. जहां द्रोपदी के सवालों को सुनकर जब विकर्ण उसके पक्ष में बोल गया था. तथा जनता कौरवों को सुना रही थी, तो उनको चुप कराने के लिए कर्ण ने इस विवाह पर उंगली उठाई थी. और द्रोपदी को वैश्या कहकर बुलाया था. लेकिन वह स्त्री जो कि सबकी रजामंदी के साथ में सम्पूर्ण वैदिक रीति से पांडवों को ब्याही गई थी वो वैश्या कैसे हो गयी?
कुछ लोग द्रोपदी के पतिव्रता होने पर इसलिए भी सवाल उठाते हैं, क्योंकि उनके बीच ऐसी अफवाह फैली हुई हैं, कि द्रोपदी का कर्ण के साथ कोई प्रेम संबंध था. लेकिन यह सिर्फ एक झूठी अफवाह ही है, इसके अलावा और कुछ नहीं है, क्योंकि यह झूठ महाभारत के किसी भी संस्करण में नहीं है।
द्रोपदी पतिव्रता इसलिए भी है, क्योंकि उसने सभी अच्छी बुरी परिस्थितियों में अपने पतियों का साथ दिया था, कौरवों ने, जयद्रथ ने, और कीचक ने उसे डराया धमकाया और यात्नाएं भी दी, साथ में यह लालच भी दिया कि उसके पति नष्ट हो गये है. अब वह अपने पति को त्याग कर कौरव, जयद्रथ, या कीचक में से किसी को चुन ले. लेकिन द्रोपदी ने इन सभी दुखों को सहा, पर अपने पतियों का साथ नहीं छोड़ा। द्यूत सभा में भी वह द्रोपदी ही थी, जिसने पांडवों को दास बनने से बचाया था, और अपने धर्म का लोहा मनवाया था। वन पर्व में द्रौपदी सत्यभामा संवाद में तो यह बताया गया है कि, द्रोपदी कैसे अपने पतियों और सास के सेवा सत्कार में लगी रहती थी. युद्धिष्ठिर आदि सभी पांडव ही क्या, दुर्योधन जैसा दुष्ट भी द्रोपदी के धर्मपरायणता की प्रशंसा करता था. क्योंकि वह ऐसी स्त्री थी जो पांच पति होने के बाद भी, पतियों और सास को समान रूप से संतुष्ट रख सकती थी।
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