भगवान श्री कृष्ण ने अभिमन्यु को क्यों नहीं बचाया?

दोस्तो महाभारत की कहानी में आपने कई वीर योद्धाओं के बारे में पढ़ा-सुना होगा। आज हम महाभारत के एक ऐसे महान योद्धा के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने महज 16 साल की उम्र में अपने पराक्रम से कौरवों की सेना के छक्के छुड़ा दिए। इस योद्धा का नाम है अभिमन्यु. उसका वध करने के लिए कौरवों ने युद्ध के नियम भी ताक पर लगा दिए थे. अभिमन्यु पांच पांडवों में से एक अर्जुन और उनकी पत्नी सुभद्रा का बेटा था । सुभद्रा श्रीकृष्ण की बहन थीं। यानी कि अभिमन्यु कृष्ण का भांजा था. ऐसा माना जाता है कि जब पांडव, युद्ध में अभिमन्यु द्वारा कौरवों के चक्रव्यूह में प्रवेश करने की योजना बिना अर्जुन को बताये बना रहे थे, तब श्री कृष्ण को इस विषय में पहले से ही ज्ञात था कि, अगले दिन युद्ध के मैदान में अभिमन्यु के साथ क्या होने वाला है. लेकिन इसके बाद भी श्री कृष्ण ने, न तो पांडवों को इस बारे में सचेत किया, और न ही अभिमन्यु की रक्षा की। ऐसे में सवाल उठता है कि, आखिर भगवान श्री कृष्ण ने अभिमन्यु को क्यों नहीं बचाया? क्या श्रीकृष्ण यही चाहते थे? जिसका जबाब आप इस आर्टिकल के माध्यम से जान सकते हैं.

अभिमन्यु

दोस्तो, अभिमन्यु को महाभारत काल के महान योद्धाओं में से एक माना जाता है। कहा जाता है कि, उसके जितना पराक्रमी महाभारत काल में और कोई नहीं हुआ। महज 16 साल की उम्र में उसने अकेले ही कौरवों की प्रमुख सेना को जख्मी कर दिया था। महाभारत के युद्ध में अभिमन्यु ने दूर्योधन के पुत्र लक्ष्मण, रुक्मार्थ, बृहदबाला, शल्यपुत्रों, दुष्मनारा समेत कई योद्धाओं को मार गिराया।

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, अभिमन्यु को चंद्रदेव के पुत्र वर्चा का अवतार माना जाता है । कहते हैं कि चंद्रमा कभी नहीं चाहते थे कि उनका बेटा पृथ्वी पर जाकर महाभारत का युद्ध लड़े। परंतु उन्हें विवश होकर अपने अपने पुत्र को महाभारत के युद्ध के लिए भेजना पड़ा था। दरअसल दुष्टों के विनाश के लिए भगवान विष्णु अवतार लेते थे। भगवान विष्णु का साथ देने के लिए सभी देवताओं को पृथ्वी पर, या तो अपना अवतार लेना पड़ता था, या फिर अपना पुत्र उत्पन्न करना पड़ता था। द्वापर युग में दुष्टों का विनाश करने के लिए भगवान विष्णु कृष्ण के रूप में अवतार लेने वाले थे। तब ब्रह्मा जी ने सभी देवताओं को यह आदेश दिया था कि, भगवान श्रीकृष्ण की सहायता के लिए वह सभी पृथ्वी पर अंशावतार लें, या अपने पुत्रों को जन्म दें। जब चंद्रमा ने सुना कि उनके पुत्र वर्चा को भी पृथ्वी पर जन्म लेना का अधिकार मिला है, तो उन्होंने ब्रह्मा के उस आदेश को मानने से इंकार कर दिया। साथ ही यह भी कह दिया था कि उनका पुत्र वर्चा अवतार नहीं लेगा।

तब सभी देवताओं ने चंद्रमा पर यह कहकर दबाव डाला कि, धर्म की रक्षा करना सभी देवताओं का कर्तव्य ही नहीं धर्म भी है। इसलिए वे अथवा उनका पुत्र अपने कर्तव्य से विमुख कैसे हो सकते हैं। देवताओं के इस प्रकार दबाव डालने पर चंद्रमा विवश हो गए थे। लेकिन फिर भी उन्होने देवताओं के सामने एक शर्त रख दी। वह शर्त यह थी कि उनका पुत्र ज्यादा समय तक पृथ्वी पर नहीं रहेगा। साथ ही भगवान श्रीकृष्ण के मित्र, देवराज इन्द्र के पुत्र, अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु के रूप में जन्म लेगा। वह भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन की अनुपस्थिति में अकेला ही अपना पराक्रम दिखाता हुआ वीरगति को प्राप्त करेगा। जिससे तीनों लोकों में उसके पराक्रम की चर्चा होगी। यानी कि अभिमन्यु के जन्म से पहले ही तय हो गया था, कि उनकी आयु महज 16 साल ही रहेगी।

इसके साथ ही चंद्रमा ने देवताओं के सामने यह शर्त भी रख दी थी कि, अभिमन्यु का पुत्र भी उस कुरु मंचा का उत्तराधिकारी होगा। चंद्रमा के इस हठ के कारण सभी देवता विवश हो गए। तब चंद्रमा के पुत्र वर्चा ने महारथी अभिमन्यु के रूप में जन्म लिया था। जिसके बाद द्रोणाचार्य द्वारा रचे गए चक्रव्युह में अपना पराक्रम दिखाकर, अल्पायु में ही वीरगति को प्राप्त हो गए। कहते हैं कि यही कारण था, कि श्रीकृष्ण ने अभिमन्यु को नहीं बचाया था।

दूसरी पौराणिक मान्यता के मुताबिक पिछले जन्म में अभिमन्यु श्रीकृष्ण का शत्रु हुआ करता था। उसका नाम कालयवन था। श्रीकृष्ण ने चालाकी से उसका वध करवाकर उसकी आत्मा को एक पोटली में बंद कर दिया था। एक बार कृष्ण की बहन सुभद्रा ने गलती से वो पोटली अपने हाथों से खोल दी। फिर पोटली से आत्मा निकलकर सुभद्रा के गर्भ में चली गई, और महारथी अभिमन्यु के रूप में जन्म लिया था। जिसके बाद द्रोणाचार्य द्वारा रचे गए चक्रव्युह में अपना पराक्रम दिखाकर, अल्पायु में ही वीरगति को प्राप्त हो गए। कहते हैं कि यही कारण था कि श्रीकृष्ण ने अभिमन्यु को नहीं बचाया था।

Updated: January 19, 2024 — 8:17 am

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